Friday, March 29, 2024

भगवान श्री शनि देव की आरती

भगवान श्री शनि देव की आरती : शनि देव को दंडाधिकारी माना जाता है। मनुष्य को उसके अच्छे-बुरे कर्मों का फल देने वाले शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र माने जाते हैं

भगवान श्री शनि देव, Lord Shani Dev - DuniyaSamachar

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।

आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान शनि देव को दंडाधिकारी माना जाता है। मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल देने वाले शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र माने जाते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग शनि मंदिरों में तेल चढ़ाते हैं। भगवान शनि देव की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान श्री शनि देव की ये आरती।

॥ भगवान श्री शनि देव जी की आरती ॥

जय जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
॥जय जय जय शनि देव॥

श्याम अंक वक्र-दृष्टि चतुर्भुजाधारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
॥जय जय जय शनि देव॥

किरीट मुकुट शीश सहज दीपत है लिलारी।
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
॥जय जय जय शनि देव॥

मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।
लोहा, तिल, तेल, उड़द, महिष है अति प्यारी॥
॥जय जय जय शनि देव॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुरत और नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
॥जय जय जय शनि देव॥

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Web Title: भगवान श्री शनि देव की आरती

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