Friday, April 5, 2024

सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा : हिन्दू धर्म के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। जो व्यक्ति सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं उन्हें मनोवांछित फल.

Somvar Vrat Katha - DuniyaSamachar

नई दिल्ली : हिन्दू धर्म के अनुसार सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। जो व्यक्ति सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं उन्हें मनोवांछित फल अवश्य मिलता है।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो सोमवार व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें।

सोमवार व्रत कथा इस प्रकार से है-

एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से वह बेहद दुखी रहता था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया।

पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि “हे पार्वती। इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।” लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई। माता पार्वती के इतना आग्रह पर शिवजी ने कहा कि तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूँ, लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।

उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस साहूकार को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई। भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही गम। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय उपरांत साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। घर में खुशियां भर गई। बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया। लेकिन व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प-आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था।

इसी तरह जब साहूकार का पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेजने का निश्चय हुआ। उस साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराओ। जहां भी यज्ञ कराओ वहीं पर ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। साहूकार का पुत्र अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी की ओर चल दिया।

दोनों मामा-भांजे रास्ते में जहां भी रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। लंबी यात्रा के बाद दोनों मामा-भांजा एक नगर में पहुँचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक ऑंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी। वर के पिता ने जब साहूकार के पुत्र को देखा तो अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए उसके मन में एक विचार आया।

उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। वर के पिता ने इसी संबंध में साहूकार के पुत्र और उसके मामा से बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। उसने साहूकार के लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र एक ईमानदार शख्स था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। जब लौट रहा था तो उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।’ जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया और राजकुमारी को महल में रख लिया।

दूसरी ओर साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुंचे और साहूकार का पुत्र ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जिस दिन लड़के की आयु 16 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात में लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अन्दर जाकर सो जाओ। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही क्षणों में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। अदृश्य रूप में जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है।

लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिए। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा तो आयोजन में उस साहूकार के पुत्र को देखकर तुरंत पहचान गया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा उसे और और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया। रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा।

इधर भूखे-प्यासे रहकर साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्होंने स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे। लड़के के मामा ने नगर में पहुँचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। साहूकार अपने बेटे के जीवित वापस लौटने की सूचना से बहुत प्रसन्न हुआ।

साहूकार अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुँचा। जहां वह अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियाँ लौट आईं। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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