Friday, April 5, 2024

भगवान कुंज बिहारी जी की आरती

भगवान कुंज बिहारी जी की आरती : कुंजबिहारी भगवान कृष्ण के हजारों नामों में से एक नाम है। कुंजबिहारी की आरती समस्त प्रसिद्ध आरतियों में से एक है।

भगवान कुंज बिहारी, Lord Kunjbihari - DuniyaSamachar

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। आरती आपके द्वारा की गई पूजा में आई छोटी से छोटी कमी को दूर कर देती है।

आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण, विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं। कुंजबिहारी की आरती समस्त प्रसिद्ध आरतियों में से एक है। यह भगवान का पूजन करते समय यथा श्रीकृष्ण के जन्म ‘जन्माष्टमी’ के अवसर पर कुंजबिहारी की आरती की स्तुति की जाती है। कुंजबिहारी भगवान कृष्ण के हजारों नामों में से एक नाम है तथा कुंज का अभिप्राय वृन्दावन की हरियाली घासों से युक्त एक स्थल से है। कुंज बिहारी जी की आराधना के लिए निम्न आरती का पाठ करना चाहिए। पढ़िए भगवान कुंज बिहारी जी की ये आरती

॥ श्री कुंज बिहारी जी की आरती ॥

॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

गले में बैजन्ती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवन में कुंडल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
नैनन बीच, बसहि उरबीच, सुरतिया रूप उजारी की॥
॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़ै बनमाली, भ्रमर सी अलक।
कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छबि श्यामा प्यारी की॥
॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकट बिलसे, देवता दरसन को तरसे।
गगनसों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग मधुर मिरदंग।
ग्वालनी संग, अतुल रति गोप कुमारी की॥
॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्री गंगै।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस जटाके बीच।
हरै अघ कीच, चरन छबि श्री बनवारी की॥
॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्जवल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू।
चहुं दिसि गोपी ग्वाल धेनू, हसत मृदु मंद चांदनी चंद।
कटत भव फंद, टेर सुनु दीन भिखारी की॥
॥आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की॥

अगले पेज पर देखें कुंज बिहारी की आरती का वीडियो :-

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Web Title: भगवान कुंज बिहारी जी की आरती

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